जैविक खेती से उत्पादकता में वृद्धि-डाॅ. बी.एस. मीणा
बूंदी में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अन्तर्गत कृषि अनुसंधान केन्द्र उम्मेदगंज, कोटा द्वारा संचालित जैविक एवं प्राकृति खेती परियोजना के तहत जैविक खेती पर एक दिवसीय प्रशिक्षण मंगलवार को हुआ। जिसमें जिले के 50 कृषकों ने भाग लिया। जैैविक खेती परियोजना प्रभारी डाॅ. बी.एस. मीणा ने हाड़ौती क्षेत्र में जैविक खेती की संभावनायें वाली फसलों पर चर्चा करते हुए क्षेत्र की ऐसी फसलें जिनकों रासायनिक उर्वरकों की कम आवश्यकता होती है, जैसे सभी दलहनी फसलें गेहूं की कम रासायनिक उर्वरक वाली किस्में, धनिया, लहसुन व मैथी, अलसी, सरसों में जैविक खेती अपनाकर फसलों की उत्पादकता, मृदा स्वास्थ्य एवं गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। जैविक उत्पादों में एंटीआॅक्सीडेंट, विटामिन, शुष्क पदार्थ और खनिज तत्व अधिक होते है जो मानव इम्यूनिटी सिस्टम को मजबुूत बनाता है। डाॅ.मीणा ने हाडौती क्षेत्रों की प्रमुख फसलों में जैविक खेती के लिए पैकेज आॅफ प्रेक्टिस की जानकारी दी। प्रशिक्षण प्रभारी डाॅ.घनश्याम मीणा ने किसानों को जैविक खेती में प्रशुधन के महत्व व उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए आह्वान किया कि पशु उत्पाद से वर्मी कम्पोस्ट एवं अन्य जैविक खादें बनाकर काम में लेना चाहिए ताकि उत्पाद के गुणें में बढ़ोतरी हो सके और बाजार में गुणवŸाायुक्त्गु उत्पादक
मिल सके। इससे मृदा स्वास्थ्य और जल उपयोग दक्षता में वृद्धि की जा सकती है। साथ ही किसानों की आय में वृद्धि होती है।
वरिष्ठ तकनीकी सहायक डाॅ. हेमराज जाट ने जैविक प्रमाणीकरण प्रक्रिया व फसल कटाई,गहराई एवं भण्डारण की विस्तृत जानकारी देते हुए पोषंक तत्व प्रबंधन से संबंधित हरी खाद व गोबर की खाद, कम्पोस्ट, गौ मूत्र एवं वर्मीवाश, तरल खाद्य प्रयोग पंचगव्य, शस्यगव्य, जीवामृत, जैव उर्वरक, आदर्श फसल चक्र के बारे में बताया । तारेश कुमार ने जैविक खेती में जैविक स्त्रोतों से पोषण प्रबंधन की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डाॅ.कमला महाजनी, इंदिरा यादव अनिल मालव, दीपक कुमार मौजूद थे।


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